मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर
किराए के मकान से निकाल दिया।
बूढ़े के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन,
एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग
आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था।
बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए
कुछ समय देने का अनुरोध किया।
पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी, और उन्होंने मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ समय
देने के लिए मना लिया।
मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे
किराया देने के लिए कुछ समय दिया।
बूढ़ा अपना सामान अंदर ले गया।
रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने
रुक कर यह सारा नजारा देखा।
उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा।
उसने तो एक शीर्षक भी सोच लिया था-
”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।”
फिर उसने किराएदार बूढ़े की और
किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं।
पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को
इस घटना के बारे में बताया।
प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और
हैरान रह गए। उन्होंने पत्रकार से पूछा,
कि क्या वह उस बूढ़े आदमी को जानता है? पत्रकार ने कहा, नहीं।
अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर
बड़ी खबर छपी।
शीर्षक था- ”भारत के पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन
जी रहे हैं”।
खबर में आगे लिखा था कि
कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पा रहे थे और कैसे उन्हें घर से बाहर
निकाल दिया गया था।
टिप्पणी की थी के आजकल फ्रेशर भी
खूब पैसा कमा लेते हैं।
जबकि एक व्यक्ति जो दो बार
पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और
लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है,
उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं।
दरअसल गुलजारीलाल नंदा को
वह स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण
रु. 500/- प्रति माह भत्ता मिलता था।
लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को अस्वीकार किया था, कि
उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए
लड़ाई नहीं लड़ी।
बाद में दोस्तों ने उसे यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया यह कहते हुए कि
उनके पास उत्पन्न का अन्य कोई स्रोत नहीं है। इसी पैसों से वह अपना किराया देकर
गुजारा करते थे।
अगले दिन वर्तमान प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ
उनके घर भेजा।
इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर
मकान मालिक दंग रह गया।
तब जाकर उसे पता चला कि
उसका किराएदार, श्री. गुलजारीलाल नंदा
भारत के पूर्व प्रधान मंत्री थे।
मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए
तुरंत गुलजारीलाल नंदा के चरणों पर झुक गया।
अधिकारियों और वीआईपीयोंने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया।
श्री. गुलजारीलाल नंदा ने इस बुढ़ापे में
ऐसी सुविधाओं का क्या काम,
यह कह कर उनके प्रस्ताव को
स्वीकार नहीं किया।
अंतिम श्वास तक वे एक
सामान्य नागरिक की तरह,
एक सच्चे राष्ट्रवादी बन कर ही रहते थे।
1997 में सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया।
जरा उनके जीवन की तुलना
उनकी ही पार्टी के समकालीन
अन्य राजनेताओं से करें...